काली घटा
रात की सन्नाटा
घनघोर काली घटा
पवन दौड़ती
तापाड़ तुपुड़
वर्षात की वुंदे
सुदुर रास्तो की
यात्रा..उजाले एका एक
दिवारो से लिप्टी छुपजाती
कुत्तोकी स्वामी भक्ती
प्रती ध्वनीत आवाज
हवाकी झोकों से
पथिक की चेहरा
चुप के से उड़ाती कफन
नग्न न वना
क्रुर ना हो! पवन
तेरी रफ्तार मे
जीवन चल्ती तो
सन्नाटो मे जीवन
ना दौड़ती मजवुरीयाँ
छुपने दे पाप
पापी पेट की सवाल थी सायद
नहितो माँ है
बच्चेको क्यो सुलाती
अथेरों मे क्यो रुलाती
कहिँ कल की उजाला
उसी को दिखाना है
पवन तु क्रुर ना बन
दरिद्री बादलको हटा
हे.... सावन की घटा
कफन की राज राज हि रख
वस तु वेहती जा
वादलो को वर्ष ने पे
मजवुर ना कर.....
सावन को परखने दे..
जीवनको उजालो में
महेक ने दे..दिवारो सें
लिपट ने दे..मजवुर
आत्मा को लासों से
गुजर ने दे..कफन
ढका का ढका हि
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