चुंंड़ियाँ

तब से सुनी है खनकते मेरो कानो मे
ये उन दिनो की याद दिलाती मुझे
जब मै माँ कि गोदी मे बैठी थी
उनकी कलाई मे मैने ईसे आविस्का कि
तब से अब तल कि दौड़ ईसकी
थकती नही चुड़ीयाँ
समुह मे हो तो खनकती
एकल पड़गई तो मौन रहती
और उसके पिघलने जल्ने
राख हो के फिर निकल्नेका दौड़
याद करती है वह!
टुठ के विखरना भी आम बात
पर सजती है कलाई में
तो शुभ सन्देश सबको देती
चुर चुर हो गई तो समझना
कमजोर थी जीवन के लिये तैयार नही
वस सज गई कलाई में तो
वहाँ जीवन के साथ मधुर प्रेम है
बारिकी से देखना छोटी छोटी उगंलियाँ
जो भी पड़ी ईन मे वह जीविका
अनेक परिवार के  खुशी और मुस्कान है
वाध्यता किसीको नही यह जरूरी है पहनना
पर सब तभी खरिदतें जब 
घर खुशीयाँ आई हो!
यह याद दिलाती मित्र मिलन
कराती ये प्रेमीयोँ की मिलन
किसने शुरू कि होगी ईस की चलन
 वह भी एक प्रेम हि होगा
निरजिव वस्तु से दिल की खनक
सुनाना वाह यह चुड़ियाँ 
क्या एक प्रेमी से कम है
पर ये जीविका भी है किसी की
मेहनत भी है किसी की
कलाकाल की आँशु भी है
कलाकारिता झलक ती
सौदर्य बड़ाती किसी की
याद दिलाती मुझे माँ से सखी तक
बस मुस्कराहट ही लेआती ये
मुस्कान की प्रतिक है यह शृङ्घार
मुझे खुब लुभाती चुँड़ीयाँ
मुझे कोही याद दिलाती चुँड़ीयाँ!!!!😊😘

Comments

Popular posts from this blog

बुबालाई पत्र

दुर्गा चालिसा

सत्य कथा/लघु कथा