प्रकृति दिवस
प्रकृति तू सच में माँ है
पर अपने बच्चो को डर
कभि कभि दिखाया कर।
अक्कल हो के भी लुटतें
ये आखिर मेरी माँ के कह कर!
पर आने वालो के लिये भी
सोचेँ! यह सोंच सिखा।
ईनसान ईमान बेच्ने लगें है
पशु वों की घर विखरे है,
ईन्होने उनकी
खानकी विखेर दी
फिर भी खुद को
बुध्दीजीवी कहते हैं
मै सोचँ सोच के पागल हु!
ये कैसे हो सकता ?
गुण, भाग , जोड़ कर देखा
समिकरण कहिँ
नहीं मिलति- जुल्ती
गीर से सिह॓ निकले
सहेरको पानी पिने
कल दिखाया था
समाचार पे भई वही,
खवर वालो ने एक साथ ,
मिल जुलकर!
हात्ती सेवोक मे ,
मैने देखा झुण्ड में!
अब हमे डराने लगें है!
मा तु ने भेजी थी,
क्या उन्हे सहेर में?
ना,, ना,, यह तो हो
हि नही सकता,
पर सेर और तेन्दुवा भी सहेर
करने आये थे !
पर्यावनरण दिवस
मनाने आये थे
वो मोल पे घुसे,
बाते करते यहाँ
की जगंल में
न रश है ना स्वाद यह तो
केवल वनायाँ प्लासटिक की घाँस है,
ये सहर के प्राणी के लिये हैं
और फिर वोल्ते फिरते हैं,
बन्दर क्या जाने अदरकका स्वाद!
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