नेपाली भाषा साहित्य और संसकृति( सक्षिप्त विवरण)
नेपाली भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। यह नब्बे के दशक में भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं में से एक है। यह भाषा भारत के पहाड़ी राज्यों में बोली जाती है। यह भाषा पूर्वी, पश्चिमी और मध्य क्षेत्रों में प्रमुख है।
यह नेपाल में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है।
यह बहुत हद तक भारत की राजभाषा हिंदी और नेपाली और उत्तर में बोली जाने वाली गडवाली और कुमाऊँनी भाषाओं से काफी मिलती-जुलती है।
इतिहास पर नजर डालें तो भक्ति काल में संस्कृत भाषा का प्रचलन था। नेपाल में कई बड़े शाही परिवारों और आधिकारिक भाषाओं द्वारा भी संस्कृत बोली जाती थी। उस समय इसे खस भाषा, पहाड़ी भाषा कहा जाता था। समय के साथ इन भाषाओं में बदलाव आया।
वसंत तिलक और विद्यारण्य केशरी जैसे विद्वान कठिन भाषा में लिखते थे, जो संस्कृत से भी प्रभावित था।
जब से कवि भानुभक्त ने सरल नेपाली भाषा का उपयोग करके रामायण के छंदों का नेपाली में अनुवाद किया। फिर शिक्षा की रोशनी आम लोगों के घरों तक पहुंची। और भानु भक्त से पहले के लेखकों और कवियों को भानु भक्तिय रामायण जैसी पहचान नहीं मिली।
उसके बाद नेपाली बहुल इलाकों में सभी ने पढ़ना-लिखना सीखा। समाज में शिक्षा का प्रकाश दिखाई देने लगा।
धीरे-धीरे, मुझे लगता है कि उसके बाद नेपाली भाषा को नामांकित किया गया। साधारण नेपाली भाषा हिंदी भाषा के समान है। लेकिन व्याकरण में अंतर है।
नेपाली भाषा में तीन लिंग होते हैं। उदाहरण के लिए स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और नपुसक लिंग, लेकिन हिंदी में केवल दो लिंग हैं। लेकिन दोनों भाषाएं देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं।
भारत में, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल , दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों के स्कूलों में नेपाली भाषा पढ़ाई जाती है। भारत के अन्य भागों में यह भाषा का प्रयोग विरल ही पाए जाते हैं। ऐसे में लोगों के मन में डर पैदा होना स्वाभाविक है।
नेपाली- गोर्खाली जगत में न केवल नेपाली भाषा बल्कि अन्य कई भाषाएँ प्रचलित हैं। जैसे- नेवारी, सुब्बा, लेप्चा, भूटिया, राई, मगर, तमांग, लिम्बु आदि। लेकिन सभी के द्वारा बोली जाने वाली भाषा नेपाली है।
सिक्किम राज्य में नेपाली के अलावा सुब्बा, लिम्बु, सिक्किम, जोंगखा आदि भाषाएँ भी स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली भाषाओं में से एक हैं। लेकिन नेपाली भाषा पश्चिम बंगाल के तराई और पहाड़ी इलाकों में पढ़ाई जाती है। और छात्र यहां विश्वविद्यालय तक की परीक्षा में नेपाली भाषा आदि में परीक्षा दे सकते हैं।
अगर हम नेपाली गोर्खाली की संस्कृति की बात करें तो हमारी सभ्यता वीर रश से शुरू हुई है। हमारे यहां बहुत सारे हिंदू और बौद्ध हैं। लेकिन कोई भी धर्म क्यों न हो, वे हमेशा संस्कृति में एकजुट रहते हैं। उदाहरण के लिए दुर्गा पूजा के सातवें दिन "फूलपाती शोभा यात्रा "को संस्कृति का मर्यादा माना जाता है। इसी तरह, "देउंशी-भैलो " अन्य जातियों में नहीं पाए जाते हैं लेकिन गोर्खाली अपने धर्म की परवाह किए बिना इसे एक संस्कृति के रूप में मनाते हैं।
लेकिन कहा जाता है कि हमारे मे चार जाति और छत्तिस वर्ण हैं। ब्राह्मण, छत्रीय, वैश्य और शूद्र चार जातियों में या उनके काम के अनुसार, ब्राह्मण, छेत्री, कामी और दमई।
शिक्षक या पुजारी को ब्राह्मण कहा जाता है, सैनिक को छेत्री कहा जाता है, कपड़ा सिल्ने वाला व्यक्ती या दर्जी को दमाई कहा जाता है और वर्तन बनाने बालों को कामी कहा जाता है। कालांतर में इसे चार जातियां कहा जाता था, लेकिन वंशज एक ही हैं। वे आर्यों के वंशजों से संबंधित हैं।
लेकिन छत्तीस वर्णों में मंगोलों के वंशज हैं, जैसे राई, लिम्बु, गुरुंग मगर, तमांग-भोटे, थामी, लेप्चा, आदि, हालाँकि उनकी संस्कृति थोड़ी अलग है, सभी जातियों में विवाह आदि का प्रचलन है।
इनमें नेवार सबसे धनी जाति होने के कारण उनके समूह में सभी वर्ग के लोग पाए जाते हैं, भाषा भी बहुत उन्नत है। वेशभूषा में भी विविधता है। इन छत्तीस वर्णों में उनके अपने कर्म- काण्ड भी भिन्न हैं, जबकि संस्कृति और वेश-भूषा भी चारों जातियों से भिन्न है।
इसी तरह बाजा-गाजा, धुन आदि भी समृद्ध और अलग हैं।
इसलिए, गोर्खाली एक शब्द में मुट्ठी भर नेपाली भाषी सलाद की तरह हैं।
नेपाली भाषा और संस्कृति विश्व में समृद्ध है। विश्व के सभी सात महाद्वीपों पर भाषा और साहित्य समाज हैं और विभिन्न देशों में प्रचार और साहित्यिक अनुवाद गतिविधियाँ चल रही हैं।
भानुभक्त ने नेपाली भाषा में एकरूपता और सरलता लाकर उसे एकजुट किया।साहवाशन के समय से चार जातियों और छत्तीस वर्ण में एकता के मंत्र का शुत्र पात हुवा और नेपाली भाषी गोर्खाली विर जाति के रूप में ,या तो मार्सल रेश के नाम से पहचाने जाने लगा।।
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